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Showing posts from August, 2020

सुविचार

अयुक्तं स्वामिनो युक्तं युक्तं नीचस्य दूषणम् । अमृतं राहते मृत्युर्विषं शंकरभूषणम् ॥ अर्थ : "समर्थ मनुष्य के लिये साधारण वस्तु भी आभूषण हो जाती है, जबकि नीच के लिये सुन्दर भी दोषरूप बन जाती है ।अमृत राहू के लिये प्राणहारी बन गया जबकी प्राणहारीविष भी शिव के लिये भूषण बन गया।"

12 Jyotirlingas are Associated with The Zodiac Signs

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क्या आप जानते हैं कि १२ ज्योतिर्लिंग राशियों से जुड़े हैं? एक ज्योतिर्लिंग या ज्योतिर्लिंगम भगवान शिव का एक भक्ति प्रतिनिधित्व है। ज्योति का अर्थ है 'चमक' और लिंगम का अर्थ है शिव की 'छवि या संकेत' । इस प्रकार ज्योतिर लिंगम का अर्थ है "सर्वशक्तिमान शिव का दीप्तिमान चिह्न" । भारत में बारह पारंपरिक ज्योतिर्लिंग मंदिर हैं। ज्योतिर्लिंग  पवित्र   मंदिर स्थान हैं जहां शिव प्रकाश के एक उग्र स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे। इन सभी स्थलों पर, प्राथमिक छवि शिव के अनंत स्वरूप के प्रतीक, शुरुआत और अंतहीन स्तंभ का प्रतिनिधित्व करती है। बारह ज्योतिर्लिंग सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, विश्वनाथ, त्रयंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर और घृष्णेश्वर हैं। १२ ज्योतिर्लिंगों में से प्रत्येक, एक राशी (राशि चक्र) के लिए मैप किया जाता है और महर्षियों ने कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति के पास एक व्यक्तिगत ज्योतिर्लिंग है। एक व्यक्तिगत ज्योतिर्लिंग एक ईष्ट देवता की तरह सीधे अपने आत्मा से जुड़ा हुआ है और इसकी पूजा करने से व्यक्ति को अपने पिछले जन्म

सुविचार

दुर्जनेषु च सर्पेषु वरं सर्पो न दुर्जनः। सर्पो दंशति कालेन दुर्जनस्तु पदे-पदे ॥ अर्थ :   " दुष्ट और साँप, इन दोनों में साँप अच्छा है, न कि दुष्ट । साँप तो एक ही बार डसता है, किन्तु दुष्ट तो पग-पग पर डसता रहता है। "

One proof of the best of Sanskrit - Raghavayadaviyam

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संस्कृत की सर्वश्रेष्ठता का एक प्रमाण - राघवयादवीयम् अति दुर्लभ एक ग्रंथ ऐसा भी है हमारे सनातन धर्म में यह है दक्षिण भारत का एक ग्रन्थ क्या ऐसा संभव है कि जब आप किताब को सीधा पढ़े तो राम कथा के रूप में पढ़ी जाती है और जब उसी किताब में लिखे शब्दों को उल्टा करके पढ़े तो कृष्ण कथा के रूप में होती है । कांचीपुरम के 17वीं शदी के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ "राघवयादवीयम्" ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है। पूरे ग्रन्थ में केवल 30 श्लोक हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है। और विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा । इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा (उल्टे यानी विलोम)के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक। पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है ~ "राघवयादवीयम" । उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक हैः वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः । रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये

सुविचार

अद्भि: गात्राणि शुद्ध्यन्ति मन: सत्येन शुद्ध्यति। विद्या तपोभ्यां भूतात्मा बुध्दि: ज्ञानेन शुद्ध्यति॥ अर्थ : "पानी से गात्र शुद्ध होते है। सत्य से मन शुद्ध  होता है। विद्या और तप से भूतात्मा और ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है।"

Types of Greetings in Sanatan Dharma

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अभिवादन शीलस्य ,नित्य वृद्धोपसेविन: । चत्वारि तस्य वर्धन्ते आर्युविद्या यशो बलम् ।। अर्थ : " अच्छे भाव से किया हुआ सम्मान के बदले बड़े लोग आशीर्वाद देते है जो एक सकारात्मक ऊर्जा होती है। " अभिवादन के पांच  प्रकार है : - १. प्रत्युथान :- किसी के स्वागत में उठ कर खड़े होना।  २. नमस्कार :- हाथ जोड़ कर सत्कार करना।  ३. उपसंग्रहण : - बड़े, बुजुर्ग, शिक्षक के पाँव छूना।  ४. साष्टांग :-  पाँव, घुटने, पेट, सर और हाथ के बल जमीन पर पूरे लेट कर सम्मान करना।  ५.  प्रत्याभिवादन : -   अभिनन्दन का अभिनन्दन से जवाब देना।

सुविचार

विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम्। पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम् ।। अर्थ :   " "विद्या" मनुष्य को 'नम्रता' देती है, और नम्रता से 'योग्यता', योग्यता से 'धन', धन से 'धर्म', फिर धर्म  से 'सुख' पाता है। " - हितोपदेशः -> नारायणपण्डितः

श्री गणेश द्वादशनामावली

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श्री गणेश द्वादशनामावली गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं। निम्नलिखित श्री गणेश के द्वादश नाम नारद पुरान में पहली बार गणेश द्वादश नामावलि मे लिखित है | विद्यारम्भ तथा विवाह के पूजन के प्रथम मे इन नामो से गणपति की आराधना का विधान है | नारद पुराण में लिखित श्री गणेश द्वादशनामावली - प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् । भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थसिद्धये ॥ १॥ प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् । तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ॥ २॥ लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च । सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ॥ ३॥ नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् । एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ॥ ४॥ द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः । न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरः प्रभुः ॥ ५॥ विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् । पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥ ६॥ जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत् । संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः ॥ ७॥ अष्टेभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् । तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्र

श्री गणेश अष्टावतार

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श्री गणेश अष्टावतार भगवान गणेश के आठ अवतारों का उल्लेख मुदगल पुराण में मिलता है, एक उपपुराण जो भगवान गणेश को विशेष रूप से समर्पित है। भगवान प्रत्येक रूप में मनुष्यों की 8 कमजोरियों को हराते हैं। ये उद्दंडता, अहंकार, इच्छा, क्रोध, लालच, भ्रम, अविश्वास और ईर्ष्या हैं। १. वक्रतुंड: वक्रतुण्डावताराश्च देहानां ब्रह्मधारकः | मत्सरासुरहन्ता स सिंहवाहनगः स्मृतः || भगवान् श्री गणेश का वक्रतुण्ड अवतार ब्रह्म स्वरुप से सम्पूर्ण शरीरों को धारण करने वाला है, मत्सर असुर का वध करने वाला तथा सिंह वाहन पर चलने वाला है।          भगवान् श्री गणेश का पहला अवतार वक्रतुण्ड का है । इसकी कथा इस प्रकार है की एक बार देवराज इन्द्र के प्रमाद से मत्सरासुर का जन्म हुआ। उसने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से भगवान् शिव के पंचाक्षरी मंत्र (ॐ नमः शिवाय) की दीक्षा प्राप्त करके भगवान शिव की कठोर तपस्या की । भगवान् शिव ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे अभय होने का वरदान दिया । वरदान प्राप्त करके जब मत्सरासुर घर लौटा तो दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने उसे दैत्यराज नियुक्त कर दिया ।           मत्सरासुर ने दैत्यों का