हिन्दू, धर्म, और जीवन पद्धति

हिन्दू, धर्म, और जीवन पद्धति



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काफी समय से यह चर्चा और तर्क का मुद्दा बना हुआ है कि ‘हिन्दू’ या ‘हिंदुत्व’ एक ‘धर्म’ है अथवा एक ‘जीवन पद्धति’ है? तर्क का विषय इसलिए अधिक बन जाता है क्यों कि इन शब्दों के ठीक – ठीक अर्थ कम लोग समझते हैं

इसे समझने के लिए हमें इन तीनों शब्दों को समझना आवश्यक है :

1. हिन्दू
2. धर्म,और
3. जीवन पद्धति।

1. हिन्दू : यहां हिन्दू से तात्पर्य ‘वैदिक सनातन धर्म’ से है। कालांतर से वैदिक सनातन धर्म को ही ‘हिन्दू धर्म’ नाम से संबोधित किया गया और सनातन धर्मी हिन्दू कहलाये। मात्र नाम बदलने से गुण-धर्म कैसे बदल जायेगा? नाम में आप कुछ भी कह लीजिये।

रंगी को ‘नारंगी’ कहे, नकद माल को ‘खोया’।
चलती को ‘गाड़ी’ कहे, दास कबीरा रोया ।।

हिन्दू भावना या हिन्दू होने का भाव ‘हिन्दुत्व’ कहलाता है।

2. धर्म : धर्म को समझने से पहले स्पष्ट कर दें कि ‘धर्म’ और अंग्रेजी भाषा के ‘Religion’ दोनों अलग – अलग अर्थ वाले शब्द हैं। अंग्रेजी में Religion का अर्थ मत, पंथ या सम्प्रदाय है। जबकि ‘धर्म’ का अर्थ इससे कहीं अधिक व्यापक है।

धर्म एक संस्कृत शब्द है। ध + र् + म = धर्म। संस्कृत धातु ‘धृ’ – धारण करने वाला, पकड़ने वाला। ‘धारयति- इति धर्म:’ अर्थात जो धारण करने योग्य है, वही धर्म है।

यतो ऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः। – वैशेषिकसूत्र 1/1/2

जिससे यथार्थ उन्नति (आत्म बल) और परम् कल्याण (मोक्ष) की सिद्धि होती है, वह धर्म है।

(ध्यान दें, मोक्ष की अवधारणा का सिद्धांत केवल और केवल वैदिक सनातन धर्म में ही मिलता है, अन्यत्र कहीं नहीं)

धर्म का सामान्य अर्थ ‘गुण’ होता है। द्रव्यों के अपने गुण होते हैं, जैसे आग और पानी का अपना गुण है। इस प्रकार कुल 9 द्रव्य (पृथ्वी, जल, तेज़, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन।) बताए गए है, संसार में सभी दृश्य अथवा अदृश्य वस्तुओं की संरचना इन्ही द्रव्यों से है। 

“पृथिव्यापस्तेजो वायुराकाशं कालो दिगात्मा मन इति द्रव्याणि।”

मनुस्मृति में धर्म के दस लक्षण बताए गए हैं :

धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌।।
– मनुस्‍मृति 6/52

"धृति (धैर्य), क्षमा, दम (हमेशा संयम से धर्म में लगे रहना), अस्तेय, शौच, इन्द्रिय निग्रह, धी (सत्कर्मों से बुद्धि को बढ़ाना), विद्या (यथार्थ ज्ञान लेना), सत्य और अक्रोध।"

याज्ञवल्क्य स्मृति ने 9 लक्षण गिनाए हैं :

अहिंसा सत्‍यमस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:।
दानं दमो दया शान्‍ति: सर्वेषां धर्मसाधनम्‌।। 
– याज्ञवल्क्य स्मृति 1/122

"अहिंसा, सत्य, चोरी न करना (अस्तेय), शौच (स्वच्छता), इन्द्रिय-निग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना), दान, संयम (दम), दया एवं शान्ति।"

इसी प्रकार श्रीमद्भगवतपुराण में सातवें स्कंध के 11वें अध्याय में श्लोक 8 से 12 तक में धर्म के 30 लक्षण बताए गए हैं।

3. जीवन पद्धति : जीवन पद्धति का अर्थ है जीने का तरीका या जीवनदर्शन।

किस प्रकार का जीने का तरीका?

एक स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए समाज के प्रत्येक इकाई में ऊपर बताए गए धर्म के लक्षण तो होने ही चाहिए, इससे तो असहमत नहीं हुआ जा सकता।

समाज परिवार से ही शुरू होता है, आप से शुरू होता है। यदि एक परिवार में लाड़-प्यार से एक जीव को पाल-पोस कर त्योहार के रूप में काट कर खा जाएं तो हे राम! उस परिवार में बाल-बच्चों की मानसिक दशा क्या होगी? वह किस प्रकार के समाज का निर्माण करेंगे? हालांकि अहिंसा का अर्थ यह नहीं है कि कायर बन कर बैठ जाएं लेकिन निर्बल, अबोध पर हिंसा कौन सी वीरता दर्शाएगी? यह निःसंदेह पाप की श्रेणी में आता है।

निष्कर्ष :

हिन्दू या वैदिक सनातन निःसंदेह ‘धर्म’ है और यह ‘धर्म’ ही ‘जीवन जीने की पद्धति’ है।

इससे यह भी स्पष्ट होता है कि ‘धर्म’ बदला नहीं जा सकता, धर्म तो 'ऋत' है। ऋत का अर्थ है – जो सहज है, स्वाभाविक है, जिसे आरोपित नहीं किया गया है। जो अंतस है आपका, आचरण नहीं। जो आपकी प्रज्ञा का प्रकाश है, चरित्र की व्यवस्था नहीं। इस स्वाभाविक धर्म से अलग बाकी सब अपने-अपने मत, पंथ या सम्प्रदाय ही हैं।

हां, लेकिन आप Religion को बदलने के लिए स्वतंत्र हैं क्योंकि मत, पंथ और समुदाय या सम्प्रदाय को चुनना तो आपके मानसिक स्थिति और विवेक के ऊपर निर्भर करता है।

विशेष :

सनातन धर्म का अर्थ: जन्म से मृत्यु तक और उसके बाद भी जन्म – मृत्यु के चक्र को पूरा करते हुए मोक्ष तक की यात्रा सनातन यात्रा कहलाती है और इस यात्रा को बताने वाला है : सनातन धर्म। 

अर्थात जब तक यह सृष्टि चलेगी तब तक वैदिक व्यवस्था में उत्पन्न हुआ व्यक्ति धर्म से जुड़ा रहेगा और अंततः आत्मा उस एक परमपिता परमात्मा में विलीन हो जाएगी। जिसका कोई आदि और अंत नहीं है और यही सनातन धर्म का सनातन सत्य है।

Hinduism, Religion, and Method of Life



It has been a point of discussion and argument for a long time whether 'Hindu' or 'Hindutva' is a 'religion' or a 'way of life'? The subject of argument becomes more because fewer people understand the exact meaning of these words.

To understand this we need to understand these three words:

1. Hindu
2. Religion, and
3. Life Method.

1. Hindu: Here Hindu means 'Vedic Sanatana Dharma'. Later, Vedic Sanatan Dharma was called 'Hindu Dharma' and Sanatana was called righteous Hindu. How will virtue change with a mere change of name? Say anything in your name.

रंगी को ‘नारंगी’ कहे, नकद माल को ‘खोया’।
चलती को ‘गाड़ी’ कहे, दास कबीरा रोया ।।

Hindu sentiment or feeling of being Hindu is called 'Hindutva'.

2. Religion: Before understanding Dharma, make it clear that both 'Dharma' and 'Religion' in the English language have different meanings. Religion in English means faith, creed, or sect. While the meaning of 'Dharma' is much broader than this.

Dharma is a Sanskrit word. D + d + m = religion. Sanskrit metal ‘Dhru’ - wearer, catcher. 'Dharayati-iti dharma:' means that which is worthy of holding, that is religion.

Yatu Abhyudayani: Sreyasiddhi: S Dharma. - Vaishika Sutra 1/1/2

Which leads to the attainment of true progress (self-power) and Param Kalyan (salvation), that is religion. 

(Note, the doctrine of the concept of Moksha is found only and only in Vedic Sanatana Dharma, nowhere else)

The common meaning of religion is 'quality'. Liquids have their own qualities like fire and water have their own properties. In this way a total of 9 dravya (earth, water, fast, air, sky, time, direction, soul, and mind.) Are told, all visible or invisible objects in the world are composed of these substances. 

"Prithivyapasthejo vayarakasham kalo digatma mana iti lavayani."

Ten signs of religion are described in Manusmriti:

Dhriti: Forgiveness Damostesayam Shouchmindriyanigraha:.

Dhirvidya Satyamkrodho Decade Dharmalakshanam. 

- Manusmriti 6/52

"Dhriti (patience), forgiveness, dum (always persisting in religion with restraint), astheya, defecation, sense grace, dhi (enhancing the intellect by virtue), vidya (taking real knowledge), truth and akrodha."

Yajnavalkya Smriti has counted 9 signs:

Ahimsa Satyamastayam Shouchamindriyanigraha:.

Danam Damo Daya Shanti: Sarveshan Dharmasharamanam.

- Yajnavalkya Smriti 1/122

Non-violence, truth, non-stealing (asthey), defecation (cleanliness), sense-nigraha (subdue the senses), charity, restraint (dum), mercy and peace."

Similarly in Shrimad Bhagwatpuran, the 11th chapter of the seventh wing mentions 30 signs of religion in verses 8 to 12.

3. Life system: Life method means the way of living or the philosophy of life.

What kind of way of life?

In order to build a healthy society, every unit of society must have the characteristics of the religion mentioned above, it cannot be disagreed with.

Society starts with the family, it starts with you. If you pamper a creature in a family and love it and eat it as a festival, then O Ram! What will be the mental condition of the children in that family? What kind of society will he build? Although non-violence does not mean to sit down as a coward, what heroism will show violence on the weak, innocent? It undoubtedly falls into the category of sin.

Conclusion:

Hindu or Vedic Sanatan is undoubted 'religion' and this 'religion' is the 'way of life'.

It is also clear from this that 'religion' cannot be changed, religion is 'debt'. Rit means - that which is spontaneous, natural, which has not been charged. Which is your inner being, not your conduct. Which is the light of your wisdom, not the arrangement of the character. Everyone else, apart from this natural religion, have their own faith, creed, or sect.

Yes, but you are free to change Religion because choosing the creed, creed, and community or community depends on your mental state and conscience.

Special :

Meaning of Sanatana Dharma: The journey from birth to death and even after that, completing the cycle of birth-death, to Moksha is called Sanatana Yatra and this journey is going to be called: Sanatana Dharma.

That is, the person born in the Vedic system will remain attached to the religion till this creation lasts and eventually the soul will merge into that one Supreme God. Which has no beginning and end and this is the eternal truth of Sanatan Dharma.


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