सुविचार
मूढानामेव भवति
क्रोधो ज्ञानवतां कुतः।
हन्यते तात कः केन
यतः स्वकृतभुक्पुमान्।।
अर्थ : " क्रोध तो मूर्खों को ही हुआ करता है, विचारवानों को भला कैसे हो सकता है? भला कौन किसी को मारता है? पुरुष स्वयं ही अपने किये का फल भोगता है। "
- विष्णुपुराणम्
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