सीतोक्तवती

सीतोक्तवती

प्रियान्न सम्भवेद् दुःखम्
अप्रियादधिकं भवेत्।
ताभ्यां हि ते वियुज्यन्ते 
नमस्तेषां महात्मनाम्।।२६•४८।।

- श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्-सुन्दरकाण्डम् 

अर्थ : "जिन्हें प्रिय के वियोग से दुःख नहीं होता और अप्रिय का संयोग प्राप्त होने पर उससे भी अधिक कष्ट का अनुभव नहीं होता इस प्रकार जो"प्रिय"और"अप्रिय" दोनों से परे है,उन महात्माओं को मेरा नमस्कार है।"

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