SATVIK, RAJSIK & TAMSIK GUN

3 वर्ती प्रकृति


सात्विक - दैविक
राजसिक - मानवीय
तामसिक - दानवीय

ये चैव सात्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये |
मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि || गीता 7/12||


अर्थ : "जो भी सात्विक, राजसिक व तामसिक भाव हैं, उनको तू मुझसे ही होने वाले जान। वे मुझमें हैं किन्तु मैं उनमें नहीं हूँ ।"

व्याख्या : सत्व, रज व तम इन तीनों गुणों से प्रकृति की रचना हुई है, इसलिए सृष्टि के सभी पदार्थों में ये तीनों गुण विद्यमान हैं। हमारे में भी ये तीनों गुण होते हैं, इन गुणों की शक्ति ही व्यक्ति से कार्य करवाती है। जब जो गुण बढ़ता है, तब मन में उस गुण का भाव आता है। सत्व गुण हल्कापन देता है, रज गुण गति और तम गुण मोह व आलस्य देता है। इन गुणों के कारण ही मन में बदलाव आता रहता है। भगवान कह रहे हैं कि, "ऐसा जानो कि सात्विक, राजसिक व तामसिक तीनों गुणों के भाव मुझसे ही उत्पन्न होते हैं, वास्तव में ये तीनों गुण मुझमें है, लेकिन 'मैं' इन गुणों में नहीं हूँ, अर्थात इनसे अति परे हूँ।"


त्रिगुण सूक्ष्म और अदृश्य हैं, स्थूल नहीं है तथा केवल सूक्ष्म ज्ञानेंद्रिय अथवा छठवीं ज्ञानेंद्रिय (सूक्ष्म संवेदी क्षमता) द्वारा ही अनुभव किए जा सकते हैं। सात्विक गुणों से युक्त व्यक्ति का उत्थान, राजसिक गुणों से युक्त व्यक्ति की मध्यम गति अर्थात् उत्थान और पतन दोनों ही संभव हैं तथा तामसिक गुणों से युक्त व्यक्ति का केवल पतन ही होगा। सभी जीव भूतों में ये गुण ही कर्ता हैं। इन गुणों से ऊपर उठकर जो व्यक्ति परमात्मा को देखता है, वही व्यक्ति गुणातीत कहलाता है। वही व्यक्ति परमात्मा को प्राप्त होता है। 

सात्विकता :: पवित्रता तथा ज्ञान-जाग्रत अवस्था-प्रकाशमान, सदैव सम स्थिति में रहना, भीतर ज्ञान होना, बाहर से बिलकुल शान्त। सात्विककिसी फल अथवा मान-सम्मान की अपेक्षा अथवा स्वार्थ के बिना समाज की सेवा करना। सत्त्व गुण सबसे सूक्ष्म तथा अमूर्त (intangible) है। सत्त्व गुण दैवी तत्त्व के सबसे निकट है। सतोगुणी व्यक्ति ज्ञानरुपी प्रकाश से प्रकाशमान रहता है। व्यक्ति यदि सात्त्विक हो, तो सत्त्व प्रधान कर्म को उर्जा प्रदान करता है। इसलिए सत्त्व प्रधान व्यक्ति के लक्षण हैं :- प्रसन्नता, संतुष्टि, धैर्य, क्षमा करने की क्षमता, अध्यात्म के प्रति झुकाव इत्यादि।

राजसिकता :: क्रिया तथा इच्छाएं-स्वप्न अवस्था, कर्मठता, सदैव कार्यरत रहना, सदैव सक्रिय रहना, सम्पूर्ण समय केवल भाग-दौड, बाहर और भीतर दोनों तरफ से अशांत । स्वयं के लाभ तथा कार्य सिद्धि हेतु जीना। रजो गुण सत्त्व तथा तम को उर्जा प्रदान करता है तथा कर्म करवाता है।

तामसिकता :: अज्ञानता तथा निष्क्रियता-सुषुप्तावस्था, आलस्य, प्रमाद, सदैव निद्रा में रहना, भीतर केवल अज्ञान, बाहर से बिलकुल शान्त, आलस्य धारण किये हुए। दूसरों को अथवा समाज को हानि पहुंचाकर स्वयं का स्वार्थ सिद्ध करना। त्रिगुणों में सबसे कनिष्ठ तम गुण है। तामसिक गुणों से युक्त व्यक्ति बाहर से शान्त नज़र आने के कारण कभी कभी सतोगुणी होने का भ्रम पैदा करता है। तामसिक गुणी व्यक्ति भीतर से अज्ञानी रहता है। तम प्रधान व्यक्ति, आलसी, लोभी, सांसारिक इच्छाओं से आसक्त रहता है। तम तामसिक प्रधान कर्म को उर्जा प्रदान करता है।


SATTV (-सत्व) :: It is the balance, harmony, peace and similar qualities. One has no expectation of recognition or reward or any ulterior motive and believes in purity-piousity-piousness, honesty-truth, virtuousness, righteousness and welfare-service of society. His goal is Moksh, Ultimate bliss & the Almighty. The subtle basic Satv component is the most subtle or intangible of the three subtle basic components. It is the component nearest to divinity. Hence, its predominance in a person is characterised by happiness, contentment, virtues like patience, perseverance, ability to forgive, spiritual yearning etc. These components are subtle because they are intangible, not physical in nature and they cannot be measured-quantaized and can only be perceived by the subtle sense organs or the sixth sense.

RAJAS (-राजस) :: This represents activity and movement. It is dynamic. Rajsic people that are stimulated, active, and don’t know how to slow down. This can eventually become unbalancing to this group of people unless it is tempered with relaxing meditation. One lives more for personal gain, achievement and authority-might and believes in action associated with passion.The subtle basic Raj component provides fuel to the other two, i.e., brings about the action. So, depending on whether a person is predominantly Satvik or Tamsik the subtle basic Rajsik component will bring about actions pertaining to Satv or Tam.

TAMAS (-तामस) :: It stands for darkness, illusion, ignorance,  quiescence, passivity, pessimism, rest, laziness, inertia, non-moving, lethargy, laziness, criminal tendencies and doubt. One patronizes ignorance, inertia and darkness-demonic forces  & has no problem about stepping on other’s toes to get ahead or harming society. The subtle basic Tam component is the basest of the three. Its predominance in a person is reflected by laziness, greed, attachment to worldly matters etc.

तामसिक गुण :: तमस् गुण के प्रधान होने पर व्यक्ति को सत्य-असत्य का कुछ पता नहीं चलता, यानि वो अज्ञान के अंधकार (तम) में रहता है। यानि कौन सी बात उसके लिए अच्छी है वा कौन सी बुरी ये यथार्थ पता नहीं चलता और इस स्वभाव के व्यक्ति को ये जानने की जिज्ञासा भी नहीं होती।

भ्रम का कारण तमस होता है, अज्ञान द्वारा जन्मी सभी चीजों को यह दास बना लेता है; लापरवाही असावधानता और निद्रालुता  अज्ञान, जड़ पदार्थ की एक विशिष्ट स्थिति, लापरवाही और भ्रम भी है; जब इनका जन्म होता है तब तमस हावी हो जाता है। जब किसी की मृत्यु राजस में होती है तब वह उस कार्य को पूरा करने के लिए फिर से जन्म लेता है: उसी तरह तमस में मृत्यु होने के बाद उसका जन्म एक जानवर के कोख से होता है।


These Guns are further divided into twenty-four ::  (i). Shape, size or color (-आकृति, रूप, आकार), (ii). Taste (-रस, स्वाद), (iii ). Odor (-गंध, smell), (iv). Tangibility (-स्पर्श, touch), (v). Number (-सांख्य, quantum), (vi). Dimension (-दिशा, space), (vii). Severalty (-पृथकता, distinct, separate), (viii). Conjunction (-संयोग, chance), (ix). Dis junction (-विभाग), (xi). Remoteness (-एकांत, दूरस्थ, isolated), (xii). Proximity (-निकटता, सामीप्य), (xiii). Weight (-गुरुत्व), (xiv). Fluidity (-द्रव्यता), (xv). Viscidity (-चुपकना, adhesive quality, stick,  having a glutinous consistency), (xvi). Sound (-शब्द), (xvii). Knowledge (-ज्ञान, बुद्धि), (xviii). Pleasure (-सुख), (xix). Pain (-दुःख), (xx). Desire (-इच्छा), (xxi). Aversion (-द्वेष), (xxii). Effort (-प्रयत्न), (xxiii). Merit (-धर्म), (xxiv). Virtues (-संस्कार).

सारे साते भावो में कहा ठहर ना यह तुम अपनी बुद्धिमत्ता से तय कर लो।

काम्...सकाम्... निष्काम्
क्रोध...अक्रोध... सान्त
मोह...वैराग.... सोक
लोभ.. विलोभ... त्याग
भय... निर्भय.... अहम्
हर्ष... समभाव... शोक
शोक...समभाव... हर्ष


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